एक दौर था जब लोग उनको सोशल मीडिया का गुरु मानते थे, लेकिन आज वो ऐसे बच्चों के गुरु हैं जिन्होने कभी बस में भी सफर नहीं किया। जो ये नहीं जानते की आज की दुनिया चांद पर भी कदम रख चुकी है। मुंबई (Mumbai) के रहने वाले अनिकेत मेंडोन्सा (Aniketh Mendonca) ऐसे बच्चों के लिए काम कर रहे हैं जो दूर दराज के पहाड़ी इलाकों में रहते हैं। अनिकेत की बदलौत आज इन बच्चों के सपने आसमान से भी ऊंचे हो गये हैं, वो अब जानने लगे हैं कि एकता के दम पर दुनिया को मुट्ठी में किया जा सकता है। अनिकेत का इन बच्चों को शिक्षित करने का अंदाज थोड़ा हट कर है वो खेल के जरिए इन बच्चों आत्मविश्वास पैदा कर रहे हैं। उनको इस काबिल बना रहे हैं ताकि आगे चलकर वो देश की बड़ी जिम्मेदारी संभाल सकें।मुंबई (Mumbai) के रहने वाले अनिकेत मेंडोन्सा (Aniketh Mendonca) ने सोशल कम्यूनिकेशन एन्ड मीडिया से मास्टर्स किया है। अनिकेत को बचपन से ही खेलों का शौक रहा है। सोशल मीडिया सेक्टर में काम करने के दौरान भी अनिकेत कई तरह के सामाजिक कामों से जुड़े रहे। इस दौरान उन्होने वालंटियर के तौर पर कई जगह अपनी सेवाएं दी। उस दौरान उनकी कोशिश रहती थी की साल में कम से कम 1 महीने वो सामाजिक कामों के लिए दें। सामाजिक कामों और खेलों के प्रति उनके इस रूझान के देखकर उनके एक दोस्त ने उनको गांधी फेलोशिप (Gandhi Fellowship) से जुड़ने का सुझाव दिया। अनिकेत को अपने दोस्त का आइडिया पसंद आया क्योंकि वो गुजरात और महाराष्ट्र के कई एनजीओ के साथ वालंटियर के तौर पर काम किया करते थे। खेलों के जरिये शिक्षा का स्तर उठाने के लिए ही उन्होने गांधी फेलोशिप (Gandhi Fellowship) से जुड़ने का फैसला किया। इस फेलोशिप से जुड़ने के बाद 2016 में अनिकेत को गांधी फैलो के तौर पर उत्तराखंड (Uttarakhand) में ‘केवल्या एजुकेशन फाउंडेशन’ (Kaivalya Education Foundation) के साथ काम करने का मौका मिला।
आज अनिकेत उत्तराखंड के अलमोड़ा जिले (Almora district of Uttarakhand) के कपकोट ब्लॉक में काम कर रहे हैं। ‘केवल्या एजुकेशन फाउंडेशन’ (Kaivalya Education Foundation) यहां पर करीब 100 सरकारी स्कूलों में शिक्षा का स्तर उठाने के लिए काम कर रहा है। इसके लिए स्कूलों में टीचरों की ट्रेनिंग और लाइब्रेरी खोलने का काम ये संस्था करती हैं। इन स्कूलों में काम करने के दौरान अनिकेत ने देखा कि यहां पर टीचर का पूरा ध्यान स्कूली पाठ्यक्रम को खत्म करने पर होता है और स्कूल में दूसरी तरह की कोई गतिविधियां नहीं कराई जाती। इस कारण बच्चों में लीडरशिप, शेयरिंग और ग्रुप में काम करने की भावना पनप नहीं पाती। अनिकेत इंडिया मंत्रा (India Mantra) को बताते हैं कि
मैंने फैसला किया कि मैं बच्चों को खेल की मदद से एकजुट करूंगा, क्योंकि खेल ही एक ऐसा जरिया है जिसमें टीम भावना के साथ काम किया जाता है। खेलते हुए जब कोई समस्या आती है तो बच्चे खुद ही उसका तोड़ निकालते हैं। इतना ही नहीं बच्चों में लीडरशिप की भावना भी पैदा होती है।
खेल को शिक्षा से जोड़ने का काम कई अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं भी कर रही हैं। इन संस्थाओं की रिसर्च बताती है कि खेल को शिक्षा से जोड़ने पर बच्चों की एकाग्रता और आत्मविश्वास में बढ़ोतरी के साथ साथ बच्चों में सीखने और याद करने की क्षमता भी बढ़ी है। अनिकेत का मानना है कि खेल में दूसरे क्षेत्रों की अपेक्षा निवेश की ज्यादा जरूरत नहीं होती। कम पैसा खर्च कर खेलों के माध्यम से बच्चों को शिक्षा के प्रति जागृत किया जा सकता है। अनिकेत कहते हैं कि इसका परिणाम भले ही तुरंत ना दिखायी दे, लेकिन जब ये बच्चे बड़े होंगे तब इन्हीं में से कोई ना कोई अपने क्षेत्र और समाज का नेतृत्व कर रहा होगा। अनिकेत इन बच्चों को 13 अलग-अलग तरह के खेल खिलाते हैं। इन खेलों में कबड्डी, खो-खो, हैंड टेनिस, फुटबॉल, क्रिकेट, कैरम, लूडो के साथ बच्चों को स्थानीय खेल मुर्गा झपट, रूमा झपट, रस्सी खींच शामिल है। पहाड़ों में स्कूलों के पास जगह की कमी होती है। इस कारण बड़े मैदान नहीं होते। यही वजह है कि इस समस्या को देखते हुए अनिकेत ने कुछ खेलों में जगह के मुताबिक बदलाव किया है।बच्चों को खेल सिखाने के साथ साथ अनिकेत उनको ये भी बताते हैं कि दूसरी टीम को कैसे आंका जाता है। कैसे योजना कर सामने वाली टीम की कमियों को ढूंढकर उसे हराया जा सकता है। करीब 1 साल तक बच्चों को खेल सीखाने के बाद इस साल अप्रैल में उन्होने प्राइमरी स्कूल के बच्चों के साथ किक्रेट मैच का आयोजन किया। इन बच्चों के लिए इस मैच भाग लेना एक यादगार अनुभव रहा। इससे पहले यहां के बच्चों ने कभी भी ऐसा मैच नहीं खेला था। इस दौरान बच्चों में तुरंत फैसले लेने, मिलजुल कर खेलने की भावना के साथ-साथ कुछ बच्चों में लीडरशिप के गुण भी दिखाई दिये। अनिकेत के मुताबिक
दूसरी टीम की हारने के लिए बच्चे अब खुद फैसले लेते हैं, क्योंकि वो जानते हैं कि ऐसे हालात में कोई उनकी मदद नहीं कर सकता। बच्चों की इसी भावना को बनाये रखने के लिए ही मैं एक पाठ्यक्रम भी तैयार कर रहा हूं। जिसकी मदद से बच्चे पढ़ाई के साथ-साथ खेलकूद से भी अपना विकास कर सकें।
खेलकूद को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाने के लिए सरकार हर महीने की आखिरी तारीख को स्कूलों में पढ़ाई की जगह पर खेलकूद का आयोजन कराती है। साथ ही हर शनिवार को मिड डे मिल के बाद भी बच्चों का एक पीरियड खेल का होता है। अनिकेत बच्चों को इस तरह तैयार कर रहे हैं कि वो आगे चलकर खुद ही खेल खेल सकें और दूसरे बच्चों के भी सिखा सकें। आज अनिकेत की इन कोशिशों से बच्चों में आत्मविश्वास बढ़ा है। जिसका असर उनकी पढ़ाई पर भी दिख रहा है। जो बच्चे पहले स्कूल में पूछे गये सवाल का जवाब देने पर डरते थे या रोने थे वो अब खड़े होकर जवाब देते हैं। साथ ही जो लड़कियां पहले खेलने से मना करती थीं अब वो ही लड़कियां कहती हैं कि उनको खेलना है और आगे बढ़ना है। अनिकेत फिलहाल 5 स्कूलों के करीब 150 बच्चों के साथ काम कर रहे हैं। इन बच्चों के खेल खिलाने के साथ-साथ अनिकेत उनको पढ़ाने का काम भी करते हैं। इसके लिए वो वीडियो का सहारा लेते हैं। इस साल नवम्बर तक अनिकेत की योजना इस पाठ्यक्रम को उत्तराखंड (Uttarakhand) के करीब 7 सौ स्कूलों तक लागू करने की है। जिससे करीब 20 हजार से ज्यादा बच्चे फायदा उठा सकें।