टोमैटो सॉस (tomato sauce) के बिना स्नैक्स की कल्पना भी नहीं की जा सकती, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसको बनाने में इस्तेमाल होने वाला करीब 60 फीसदी टमाटर (tomato) दूसरे देशों से आयात किया जाता है। ये हाल तब है जब भारत टमाटर उत्पादन (tomato production) में दुनिया में दूसरे नंबर पर है। इसकी बड़ी वजह ये है कि देश में उत्पादित होने वाला ज्यादातर टमाटर उचित रख रखाव ना होने के कारण या तो खराब हो जाता है या फिर किसान उसे सस्ते दाम पर बिचौलियों को बेच देते हैं। ऐसी हालत में किसानों को उनकी लागत का पैसा भी नहीं मिल पाता। इस स्थिति को बदलने के लिये पेशे से इंजीनियर (engineer by profession) और वाराणसी (Varanasi) में रहने वाले 24 साल के हिमांशु पांडे (Himanshu Pandey) आगे आये हैं। वो किसानों को जागरूक करने और उनको टमाटर की खेती (tomato farming) से कैसे पैसा कमाया जा सकता है इसका तरीका बता रहे हैं।
पेशे से इंजीनियर हिमांशु पांडे (Himanshu Pandey) हमेशा से किसानों के लिए काम करना चाहते थे। इसलिए साल 2016 में नौकरी छोड़ ‘यूथ फॉर इंडिया’ फैलोशिप (‘Youth for India’ fellowship) के जरिये किसानों के साथ जुड़ने का फैसला लिया। इस दौरान उनको करीब 13 महीने तक गांव में रहकर काम करना था। इंजीनियरिंग के दौरान ही उन्होने महाराष्ट्र के विदर्भ (Vidarbha, Maharashtra) में किसानों की आत्महत्या के बारे में सुना था। अकेले औरंगाबाद डिविजन के बीड में साल 2014 में 450 किसानों ने आत्महत्या की थी। ‘यूथ फॉर इंडिया’ (‘Youth for India’) में चयन के बाद जब वो रिसर्च के लिए बीड गये और उन्होने किसानों की आत्महत्या (farmers suicide) का कारण जानना चाहा तो उनको पता चला कि यहां के किसान कर्ज के बोझ से दबे हुए हैं। बैंकों का करीब 2 हजार करोड़ रुपया किसानों पर बकाया है। हिमांशु ने जब वहां के लोगों से बात की तो पता चला कि फसल उगाना ही परेशानी नहीं है बल्कि सबसे बड़ी समस्या उस फसल को बेचने की है। जहां पर किसान को उनकी लागत मूल्य भी नहीं मिल पाता है। इसकी एक वजह ये भी थी कि कानून के मुताबिक किसान अपने उत्पादों को एक साल तक जमा नहीं कर सकता। जिसके बाद हिमांशु ने किसानों के बीच फसल काटने के बाद की समस्या के लिए काम करने का फैसला लिया।हिमांशु ने इस समस्या से निपटने के लिये करीब एक महीने रिसर्च की। इसके बाद पिछले साल दिसंबर में वो मैसूर जिले (Mysore district) के नरसीपुरा तहसील के बन्नूर इलाके से करीब 8 किलोमीटर दूर सिंहहल्ली गांव में आकर किसानों के बीच काम करने लगे। इस इलाके के किसान कावेरी जल विवाद में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने से पहले चावल और गन्ने की खेती करते थे, लेकिन फैसला आने के बाद कर्नाटक (Karnataka) में सबसे ज्यादा नुकसान मैसूर जिले के किसानों (farmers of Mysore district) का हुआ। इसकी वजह थी कि इन किसानों को ज्यादा पानी के फसल उगाने की आदत थी। पानी की कमी के बाद उन्होने टमाटर उगाना शुरू कर दिया। इस कारण बाजार में मांग की अपेक्षा सप्लाई बढ़ने से टमाटर के दाम काफी नीचे गिर गये। हालत ये हो गई कि कई बार किसानों को टमाटरर एक से दो रूपये तक बेचने के लिये मजबूर होना पड़ा। इस हालत में किसान फसल को तोड़ते भी नहीं थे और उसे खेत में ही जला देते थे। हिमांशु ने ये सब अपने सामने देखा जब वो यहां आये।
इसके बाद हिमांशु ने गांवों में जाकर सर्वे किया। शुरूआत में उनके सामने भाषा की समस्या आई, क्योंकि यहां के लोग कन्नड़ ही बोलते और समझते थे। इस दौरान एक हादसे में उनको करीब दो महीने तक इस काम से दूर रहना पड़ा। जिसके बाद मई से वो यहां पर पहले काम कर रही ‘उमंग महिला ग्रुप’ के साथ काम कर रहे हैं। ये 18 महिलाओं का एक संगठन है। हिमांशु ने इंडिया मंत्रा (India Mantra) को बताया कि
मैंने सोचा कि टमाटर एक ऐसी फसल है जो बहुत जल्दी खराब हो जाती है इस कारण किसानों को काफी सस्ते दामों में इसे बेचना पड़ता है। तब मैंने टमाटर से ही टोमैटो कैचप (tomato ketchup) और दूसरे उत्पाद बनाने के बारे में फैसला किया। इसकी एक वजह ये भी थी कि देश में टोमैटो कैचप (tomato ketchup) की मांग बढ़ती जा रही है। अब भी देश में कुल उत्पादन का केवल 1 प्रतिशत ही प्रोसेसिंग यूनिट में जाता है, जबकि पश्चिमी देशों में ये 25 से 30 प्रतिशत तक है।
इसके बाद हिमांशु ने टोमैटो कैचप (tomato ketchup) के लिये महिलाओं के इस संगठन को मैसूर के डिफेंस फूड रिसर्च लेबोरेटरी (Mysore’s Defense Food Research Laboratory – DFRL) से एक हफ्ते की ट्रेनिंग दिलवाई। इसके बाद हिमांशु के सामने एक नई परेशानी आई और वो टमाटर ही थी जो इस इलाके में उगाये जाते थे। इस इलाके में ज्यादातर किसान टमाटर की जो प्रजाति उगाते थे उसका इस्तेमाल कैचप बनाने में नहीं होता था क्योंकि टोमैटो कैचप (tomato ketchup) बनाने के लिए जामुन प्रजाति के टमाटर का इस्तेमाल होता है। इसलिये हिमांशु ने उन किसान महिलाओं की पहचान की जो पहले से जामुन प्रजाति के टमाटर की खेती कर रहे थे। इस टमाटर में गूदा ज्यादा होने के कारण इसका इस्तेमाल टोमैटो कैचप (tomato ketchup) बनाने में होता है।
इसके बाद उन्होने उन महिलाओं को ट्रेनिंग के लिये चुना जो इस काम को करना पसंद करती थी। जिसके बाद हाल ही में उन्होने 2 लीटर टोमैटो कैचप (tomato ketchup) का एक सैंपल बैग तैयार किया है। जिसके स्वाद और जांच के लिए उन्होने इसे लेबोरेटरी में भेजा है। एक महीने बाद उनको उम्मीद है कि वो अपने इस कैचप को बाजार में उतार सकेंगे। फिलहाल ये महिलाएं अपने घर से ही ये कैचप बना रही हैं। ये कैचप इस समय वहां पर ग्रुप की लीडर कमला मैडम के घर पर बनाया जा रहा है और वो महीने में 50 किलो कैचप बना रहीं हैं। हिमांशु की कोशिश है कि इस ग्रुप के बनाये कैचप का रजिस्ट्रेशन हो जाये। जिससे वो इसे बाजार में उतार सकें और इससे होने वाला फायदा सीधे किसानों को मिल सके।