जानवरों से उनको गहरा लगाव रहा है यही वजह है कि वो उनके अधिकारों से जुड़े संगठन पेटा (PETA) के साथ कई सालों से जुड़ी हुई हैं। पेशे से वो चार्टेड अकाउंटेंट (Chartered Accountant) हैं। उन्होने करीब छह साल लंदन (London) में बिताये और वहां नौकरी की, लेकिन दूसरों से अलग सोच रखने वाली देविका श्रीमल (Devika Srimal) नौकरी के बंधन में बंधना नहीं चाहती थीं। इसलिये उन्होने तय किया कि वापस अपने देश लौटेंगी और कुछ ऐसा काम करेंगी जो ना सिर्फ उनको पसंद हो बल्कि उससे जानवरों की भी हिफाजत हो। इसलिये उन्होने अप्रैल, 2015 से ‘कैनाबिस’ (Kanabis) नाम से एक कम्पनी खोली। जो कपड़े और जूट से बने जूते बनाने का काम करती है। ये देश की पहली ऐसी कम्पनी है जो जूते बनाने में चमड़े का बिल्कुल भी इस्तेमाल नहीं करती। खास बात ये है कि कम्पनी के बनाये जूते ना सिर्फ दिखने में खूबसूरत होते हैं बल्कि ये मजबूती में किसी ब्रांडेड कम्पनी के जूतों को मात देने के लिये काफी हैं।
देविका श्रीमल बापना (Devika Srimal Bapna) ने अपनी पढ़ाई लंदन (London) से की और उसके बाद 6 साल तक वहां चार्टेड अकाउंटेंट (Chartered Accountant) की नौकरी की। साल 2013 में वो लंदन को छोड़कर भारत वापस आ गई और गुड़गांव में एक कम्पनी के लिये काम किया और यहीं रहकर उन्होने पत्राचार (Correspondence) के जरिये यूएस से एमबीए (MBA from USA) किया। इतना सब करने के बाद भी देविका कुछ अलग करना चाहती थीं इसलिये उन्होने तय किया कि वो कुछ अलग काम करेंगी। देविका जानवरों से बहुत प्यार करती हैं और वो पेटा (PETA) के साथ वालंटियर के तौर पर लंबे वक्त से जुड़ी हुई हैं। इस कारण जब वो चमड़े के जूते, सैंडिल और चप्पल पहनती थीं तो उनको काफी बुरा लगता था। वो मॉल और बाजारों में अपने लिए ऐसे जूते, चप्पल ढूंढा करती थीं जिसमें चमड़े का इस्तेमाल ना हो, लेकिन हर छोटे, बड़े ब्रांड के जूते या चप्पल के सोल में चमड़े का इस्तेमाल होता था।
देविका ने इंडिया मंत्रा (India Mantra) को बताया कि
जहां कहीं भी मुझे वैगन शूज (wagon shoes) मिलते थे वो या तो दिखने में खूबसूरत नहीं लगते थे या फिर वो आरामदायक नहीं होते थे। इन सब परेशानियों के बाद मैंने चमड़े रहित (leather free) ब्रांड से जूते बनाने का फैसला किया। इसके लिए मैंने ‘कैनाबिस’ (Kanabis) नाम से कंपनी की नींव रखी।
ये कंपनी महिलाओं और लड़कियों के लिए जूते और सैंडिल डिजाइन (shoes and sandals design) करती हैं। हालांकि देविका मानती हैं कि वो कोई प्रोफेशनली शू डिजाइनर (professional shoe designer) नहीं हैं और ना ही उनको इस क्षेत्र में काम करने का कोई अनुभव है। बावजूद वो इस बात को अच्छी तरह जानती हैं कि कैसे बिना चमड़े के भी जूतों को सुन्दर और डिजाइनर बनाया जा सकता है। इस काम को शुरू करने से पहले देविका ने करीब 1 साल तक काफी रिसर्च की। इसके बाद उन्होने एक फुट वियर शू डिजाइनर (footwear shoe designer) को काम पर रखा और जूतों को बनाने के लिए आउटसोर्सिंग करने का फैसला लिया। देविका जूतों में इस्तेमाल होने वाले कपड़े और जूट का चयन खुद करती हैं इसके अलावा किसी भी जूते को फाइनल टच वो ही देती हैं। जूते में फीते लगाने का काम हो या कोई डिजाइन बनाना हो वो सब काम देविका अपनी देखरेख में करवाती हैं।
देविका ने शुरूआत में देश के सभी छोटे बड़े शहरों में ‘कैनाबिस’ (Kanabis) की प्रदर्शनी लगाई और एक साल में उन्होने करीब 35 प्रदर्शनियों में हिस्सा लिया। देविका बताती हैं कि
मैं हर हफ्ते मुंबई (Mumbai), कोलकाता (Kolkata), हैदराबाद (Hyderabad), चैन्नई (Chennai), अहमदाबाद (Ahmedabad) जैसे कई शहरों में अपने जूतों को डिब्बों में लेकर प्रदर्शनी में हिस्सा लेने पहुंच जाती थी। इससे मुझे काफी फायदा मिला और मेरी सेल अच्छी हो गई। क्योंकि यहीं से मुझे कई कंपनियों ने भी आर्डर देने शुरू कर दिये।
धीरे-धीरे देविका के काम को पहचान मिलने लगी। इसके बाद उन्होने ई-कॉमर्स साइट्स (e-commerce sites) जैसे अमेजन (Amazon) और फ्लिपकार्ट (Flipkart) पर भी अपने जूते, सैंडिल बेचने शुरू कर दिये। साथ ही उन्होने अपनी कंपनी की वेबसाइट पर भी अपने ब्रांड के जूते, सैंडिल बेचने का काम शुरू किया। दिल्ली (Delhi) के सरिता विहार (Sarita Vihar) उनका अपना एक वेयर हाउस (warehouse) है। इस तरह देविका ने पहले साल में ही करीब 2 हजार जोड़ी जूते बेचे। जबकि इस साल नोटबंदी के बावजूद उनको उम्मीद है कि वो 20 से 25 प्रतिशत ज्यादा सेल करेंगीं। देविका का दावा है कि
हमारे बनाये जूते काफी आरामदायक, मजबूत और स्टाइलिश हैं। हमारे बनाये सैंडिल की 4 इंच हील पहनकर बिना परेशानी के कोई भी घंटों खड़ा रह सकता है।
अपने काम में आने वाली परेशानियों के बारे में देविका का कहना है कि वो अपनी वेबसाइट के जरिये जो ऑनलाइन सेल करती हैं उसमें काफी ऑर्डर वापस आ जाते हैं क्योंकि लोगों को अपने पैरों का साइज पता नहीं होता। इसके अलावा कई बार जब जूतों की डिमांड बढ़ जाती है तो उस वक्त भी थोड़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। बावजूद देविका इन चुनौतियों से निपटना अच्छी तरह से जानती हैं और ऐसे अनुभव से वो हर रोज कुछ ना कुछ सीख रहीं हैं ताकि अगली बार वो और बेहतर तरीके से काम को कर सकें।
फिलहाल देविका की कोशिश ऑनलाइन सेल को बढ़ाने पर है। हालांकि वो ये अच्छी तरह जानती हैं कि उनकी ये कंपनी नई है बावजूद उनकी पूरी कोशिश है कि लोगों को उनके बनाये जूते और सैंडिल पर भरोसा बना रहे। यही वजह है कि ऑर्डर देने के दो दिन के भीतर वो देश के किसी भी हिस्से में जूते या सैंडिल पहुंचाना का दावा करती हैं। किसी भी ब्रांडेड जूते या सैंडिल के मुकाबले आधे दाम पर मिलने वाले ‘कैनाबिस’ (Kanabis) के उत्पाद मजबूती और स्टाइल के मामले में किसी से भी कम नहीं हैं। यही वजह है कि देविका को इस काम के लिए लोगों से काफी अच्छा फीडबैक मिल रहा है। इनमें से काफी सारे ग्राहक ऐसे हैं जो दोबारा उनके पास खरीदारी के लिये आते हैं। देविका का कहना है कि इस काम को वो शायद नहीं कर पाती अगर उनको घरवालों का साथ नहीं मिलता।
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