दुनिया में कुछ लोग ऐसे होते हैं जो लगातार इस कोशिश में रहते हैं कि अपने जीवन में कैसे खुशियां ला सकें। ऐसे लोगों को इस बात से कोई सरोकार नहीं होता कि दूसरों के जीवन में खुशी हैं भी या नहीं। वहीं दूसरी ओर ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है जो दूसरों की खुशियों में अपनी खुशियां ढूंढते हैं। तभी तो दिल्ली की रहने वाली साधिका छाबड़ा (Saadhika Chhabra) कभी फैशन की दुनिया में नाम कमाना चाहती थी, लेकिन जब उनको महसूस हुआ कि वो ये सब सिर्फ अपनी खुशी के लिये कर रही हैं, तो वो अपने करियर की चिंता छोड़ जुट गईं गरीब बच्चों को पढ़ाने के लिये। आज 23 साल की साधिका छाबड़ा (Saadhika Chhabra) दिल्ली (Delhi) के एक सरकारी स्कूल में ‘टीच फॉर इंडिया’ (Teach for India) की मदद से बच्चों को पढ़ाने का काम करती हैं। इन्ही बच्चों में अपना करियर देख रही साधिका चाहती हैं कि इन बच्चों को पढ़ाई की वो हर सुख सुविधा मिले जिनकी बदौलत ये बच्चे अपने सपने पूरे कर सकें।
साधिका छाबड़ा (Saadhika Chhabra) फैशन जगत में अपना करियर बनाना चाहती थीं। इसलिये उन्होने दिल्ली स्थित पर्ल अकादमी (Pearl Academy, Delhi) से फैशन मार्केटिंग और रिटेल मैनेजमेंट (fashion marketing and retail management) का कोर्स किया। कोर्स पूरा करने के बाद उन्होने करीब साल भर तक नौकरी की। इस दौरान साधिका ने सोचा कि उन्होने जो चाहा हैं वो उनको मिला, लेकिन ऐसे कई लोग हैं जिनको ऐसे मौके नहीं मिलते इसके अलावा वो चाहती थीं कि जिस समाज ने उनको इतना कुछ दिया है उसको वो कुछ लौटा सकें। इसके लिए उन्होने तय किया कि वो बच्चों को पढ़ाने का काम करेंगी। इसके लिए उन्होने ‘टीच फॉर इंडिया’ फैलोशिप के लिए आवेदन किया और उनका चयन हो गया। जिसके बाद इस साल जून से वो दिल्ली के दक्षिणपुरी इलाके के नगर निगम स्कूल में चौथी क्लास के बच्चों को पढ़ाने का काम कर रही हैं।
23 साल की साधिका ने इंडिया मंत्र (India Mantra) से कहा कि
हर इंसान को अपनी जिंदगी का कुछ समय समाज को देना चाहिए। मुझे इस उम्र में लगा कि मेरे पास काम करने के लिए ज्यादा एनर्जी है, जिसका उपयोग मैं बच्चों की जिंदगी संवारने में कर सकती हूं। जो कि शायद में 30 साल के बाद नहीं कर पाती।
40 बच्चों को पढ़ाते हुए साधिका उन बच्चों के साथ काफी खुश रहती हैं। उनकी क्लास में पढ़ने वाले बच्चों की उम्र 8 साल से लेकर 10 साल के बीच है। इस उम्र में बच्चे बहुत ही जिज्ञासु और शरारती होते हैं, लेकिन सरकारी स्कूलों में बच्चों को क्वालिटी एजुकेशन नहीं मिल पाती। इसी बात को ध्यान में रखते हुए साधिका की कोशिश रहती है कि जिस तरह की तालिम उन्होने हासिल की उसी तरह की शिक्षा वो इन बच्चों को दें सकें। इतना ही नहीं साधिका की कोशिश है कि वो इन बच्चों के बीच शिक्षा का स्तर उठाने के साथ-साथ उनको अच्छी वैल्यू भी दे सकें। साधिका के मुताबिक
जिस जगह से ये बच्चे आते हैं वो माहौल इस उम्र के बच्चों के लिये ठीक नहीं होता बावजूद इन बच्चों को उसी परिवेश में रहना पड़ता है। इस कारण ना चाहते हुए भी इन बच्चों में उस माहौल का असर आ जाता है। ऐसे में मेरी कोशिश है कि अगले दो सालों में मैं भले ही पढ़ाई में इन बच्चों को बहुत आगे ना ले जा सकूं, लेकिन एक अच्छा इंसान बनाने में कामयाब रहूं।
साधिका के मुताबिक उनके सामने काफी चुनौतियां हैं बावजूद उनकी पूरी कोशिश है कि वो बच्चों को क्राफ्ट मेंकिंग, या डिजिटल तरीके से बच्चों को पढाकर उनमें पढाई के प्रति रूचि जगा सकें। इसके साथ साथ साधिका ‘डिजाइन फॉर चेंज प्रोजेक्ट’ (Design For Change Project) के तहत काम कर रहीं हैं। ये एक अंतर्राष्ट्रीय प्रोजेक्ट (international project) है इसमें दुनिया भर से लोग अपनी एंट्री भेजते हैं। इस प्रोजेक्ट के जरिये बच्चों के उनके समाज में प्रचलित गालियों और खराब भाषा के अलावा खराब माहौल से कैसे बचाया जाये इसकी जानकारी दी जाती है। इस प्रोजेक्ट में बच्चे खुद ही इनसे बचने के उपाय सुझाते हैं साथ ही उन उपायों को कैसे अमल में लाया जा सकता है ये भी वो खुद ही बताते हैं। साधिका के मुताबिक
इस प्रोजेक्ट के चार चरण होते है- फील, इमैजिन, डू और शेयर (Feel, Imagine, Do, Share) पहले हिस्से में हम बच्चों से कहते हैं कि वो अपने समाज की एक समस्या बतायें। जिसके बाद उनसे उस समस्या का समाधान पूछा जाता है। इसके लिये वो पोस्टर और नाटकों के जरिये किस तरह उस समस्या को दूर किया जा सकता है ये बताते हैं। अंत में ये बच्चे प्रोजेक्ट के दौरान जो भी काम करते हैं उसका वीडियो बनाकर यू-ट्यूब के माध्यम से शेयर किया जाता है।
साधिका ने अब तक इस प्रोजेक्ट को जिस स्कूल में वो पढ़ाती हैं वहीं पर लागू किया है, लेकिन वो चाहती हैं कि इस प्रोजेक्ट का फायदा दूसरे स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को भी हो।
साधिका बच्चों को स्कूल में आने के लिए भी प्रोत्साहित करती हैं। जिन बच्चों की स्कूल में पूरी हाजिरी होती है और जो क्लास में अनुशासन में रहते है वो ऐसे बच्चों को समय समय पर इनाम भी देती हैं। इनाम के तौर पर साधिका बच्चों को कॉपी, पेंसिल, रबड़ और शॉपनर देती हैं। साथ ही जिन बच्चों की स्कूल में सौ प्रतिशत हाजिरी होती है उनको प्रमाण पत्र दिया जाता है। साधिका ने अपने क्लास रूम को एक खास थीम पर तैयार किया है और उसे नाम दिया है ‘मैजिक लैंड’। वो बच्चों से कहती हैं कि किसी बच्चे ने आपस में टिफिन शेयर किया या एक दूसरे की मदद की तो ये मैजिक है। पढ़ाई के साथ साथ साधिका बच्चों को खेलकूद भी कराती हैं। इस दौरान उनकी कोशिश होती है कि बच्चे बिना किसी दिक्कत अपनी परेशानी टीचर से कह सकें।
इन बच्चों को इनोवेटिव और प्रैक्टिकल तरीके से पढ़ाने के लिए साधिका ने 2 लाख रुपये का फंड जुटाने का फैसला किया है। इसके लिए वो क्राउड फंडिग (crowd funding) की मदद ले रही हैं। अब तक उनके इस काम के लिए 90 हजार रुपये का फंड जुट चुका है। उनकी योजना है कि इस फंड के जरिये वो बच्चों के लिए एक बोर्ड गेम, किताबें, क्रिकेट किट, बैडमिंटन कोर्ट, और लैपटॉप ले सकें। इसके अलावा वो बच्चों के लिए गेस्ट लेक्चर जैसे डॉक्टर और दूसरे लोगों को स्कूल में बुलाना चाहतीं हैं। जिनके साथ बातें कर बच्चे उनसे प्रेरणा ले सकें।