उनका पर्यावरण संरक्षण (environment protection) से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं था, वो चेन्नई (Chennai) में एक विज्ञापन कंपनी (advertising company) चलाते थे, लेकिन डेढ़ साल पहले जब वो बेंगलुरु (Bengaluru) आये तो उनका मकसद ही बदल गया। बेंगलुरु में टॉकिंग अर्थ (Talking Earth) नाम से अपना संगठन चलाने वाले वरुण हेमचन्द्रन (Varun Hemachandran) आज पेड़ों को कटने से बचाते हैं। इतना ही उन्होने एक ऐसा ऐप बनाया है जिसमें पेड़ों की मैपिंग होती है। जिसके जरिये पता चलता है कि कोई पेड़ पर्यावरण (environment) के लिये कितना जरूरी है। इस तरह विकास के कामों के लिये कटने वाले पेड़ों को बचाया जा सकता है।
मार्केटिंग बैकग्राउंड से ताल्लुक रखने वाले वरुण हेमचन्द्रन (Varun Hemachandran) करीब डेढ़ साल पहले तक चेन्नई (Chennai) में रहते थे। उसके बाद वो बेंगलुरु (Bengaluru) में आकर रहने लगे। करीब साल भर पहले बेंगलुरु (Bengaluru) प्रशासन ने ट्रैफिक जाम से निजात पाने के लिए एक स्टील फ्लाई ओवर बनाने का फैसला लिया था। ये काफी महंगा प्रोजेक्ट था, जिसकी कीमत करीब 2 हजार करोड़ रुपये आंकी गई थी। फ्लाई ओवर बनाने के लिये करीब दो हजार पेड़ों को काटा जाना था। जबकि प्रशासन की तरफ से इसे 8सौ पेड़ ही बताया जा रहा था। जब स्थानीय लोगों को इसकी जानकारी मिली तो उन्होने मिलकर सिटीजन आंदोलन की शुरूआत की। वरुण ने भी इस आंदोलन में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। वरुण ने इंडिया मंत्रा को बताया कि
इस आंदोलन में शामिल होने के बाद मुझे अहसास हुआ कि मुझे सिर्फ इस आंदोलन तक ही सीमित नहीं रहना है, क्योंकि ये केवल अकेले बेंगलुरु (Bengaluru) की ही समस्या नहीं है, बल्कि विकास के नाम देश के हर हिस्से में ऐसे ही पेड़ों की कटाई की जाती है।
इस आंदोलन ने बाद वरुण को टॉकिंग अर्थ (Talking Earth) का आइडिया आया। इस तरह 2016 में वरुण ने ‘टॉकिंग अर्थ’ (Talking Earth) की स्थापना की। ये संगठन पेड़ों से जुड़े डाटा इकट्ठा करता है। इस डाटा को उन संगठनों और एनजीओ को दिया जाता है जो पर्यावरण (environment) के क्षेत्र में काम कर रहे हैं। इतना ही नहीं इस संगठन के डाटा का इस्तेमाल कई शहरों का प्रशासन भी करता है, ताकि इलाके के विकास के लिये जो प्लान बनाया जाये उसमें पेड़ों का भी ख्याल रखा जा सके। ‘टॉकिंग अर्थ’ (Talking Earth) का मुख्य उद्देश्य अपने को केवल पर्यावरण तक ही सीमित रखना नहीं है बल्कि इसके जरिये वो लोगों को जागरूक करने का भी काम करते हैं। संगठन से जुड़े लोग आम लोगों को बताते हैं कि अगर उनके आसपास कोई पेड़ कटता है, तो वहां के लोगों को कितना और किस तरह का नुकसान हो सकता है। पेड़ों की मैपिंग के दौरान लोगों को उस पेड़ की खूबी और पर्यावरण में उसका क्या महत्व है, ये भी बताया जाता है। जिससे कि वो जान सकें कि पेड़ सिर्फ ऑक्सीजन ही नहीं देते हैं, बल्कि ये मिट्टी के कटाव को रोकते हैं और जमीन के पानी को भी सूखने से बचाते हैं।
‘टॉकिंग अर्थ’ (Talking Earth) किस तरह काम करता है इसका वरुण एक बेहतर उदाहरण देते हैं। वो बताते हैं कि 90 के दशक में कर्नाटक के कोलार में वहां के प्रशासन ने किसानों की हालत सुधारने के लिये इलाके में 5 लाख यूकेलिप्टस के पेड़ (Eucalyptus trees) लगवाये। इसकी वजह थी कि ये पेड़ जल्दी बढ़ते हैं और कागज बनाने की फैक्ट्री और दूसरे कामों में भी इस पेड़ के उत्पादों का काफी इस्तेमाल होता है। ऐसे में प्रशासन को उम्मीद थी कि इन पेड़ों से किसानों की आय में इजाफा होगा। कुछ समय तक किसानों को इन पेड़ों का फायदा भी हुआ, लेकिन पिछले 6 सालों से कोलार भयंकर सूखे की चपेट में है, क्योंकि यूकेलिप्टस का पेड़ (Eucalyptus trees) एक दिन में जमीन का 80 लीटर पानी सोख लेता है। ऐसे में अगर 80गुणा 5लाख कर दिया जाये तो हालात को समझने में देर नहीं लगेगी कि क्यों वहां की जमीन बंजर हो गई।
‘टॉकिंग अर्थ’ (Talking Earth) पेड़ों की मैपिंग का काम तीन चरणों में करता है। इसके लिए इन्होने एक ऐप बनाया है जिसे केवल इनके वालंटियर और इनके साथ काम करने वाली संस्थाएं ही इस्तेमाल कर सकती हैं। इसके लिए ये सबसे पहले पेड़ का डाटा इकट्ठा करते हैं। उसके बाद उन आंकड़ों को संबंधित संगठनों के साथ साझा किया जाता है। आखिर में उस डाटा का विश्लेषण किया जाता है जिससे कि पता चल सके कि पर्यावरण में पेड़ का क्या प्रभाव पड़ा। वरूण के मुताबिक
इसी डाटा की वजह से हमने एनजीटी के जरिये स्टील फ्लाईओवर बनने से जो 2हजार पेड़ कट रहे थे उनको बचाया। हमने अपने डाटा के जरिये प्रशासन को ये बताने को कोशिश की कि एक इंसान को ऑक्सीजन लेने के लिए 8 पेड़ों की जरूरत होती है।
‘टॉकिंग अर्थ’ (Talking Earth) के साथ दो तरीके से लोग वालंटियर के तौर पर जुड़े हैं। पहले वो लोग हैं आम लोग हैं या फिर कॉलेज के छात्र हैं और दूसरे वो संगठन हैं जिनको ‘टॉकिंग अर्थ’ अपना डाटा उपलब्ध कराता है। फिलहाल ‘टॉकिंग अर्थ’ के साथ बेंगलुरु (Bengaluru), चेन्नई (Chennai) में करीब 20 वालंटियर हैं और दिल्ली में करीब 6 वालंटियर हैं। जबकि विभिन्न संगठनों के जरिये भी कई वालंटियर इनके साथ जुड़े हुए हैं, जिनकी संख्या सैकड़ों में है। इसके अलावा दुबई और नीदरलैंड से भी कई लोग वालंटियर के तौर में इनके साथ जुड़े हुए हैं। ‘टॉकिंग अर्थ’ की योजना जल्द ही अपने काम को मुंबई में भी शुरू करने की है।
अधिक जानकारी के लिए आप ‘टॉकिंग अर्थ’ (Talking Earth) की वेबसाइट पर जा सकते हैं।